Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Ayurvedic treatment of Urethral stricture or Mutra ghat or Mutrotsang – Practical panchakarma procedure.

 मूत्राघात / मुत्रोत्संग/ मूत्र मार्ग संकोच (यूरिथ्रल स्ट्रीकचर) की आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यावहारिक पंचकर्म चिकित्सा| Ayurvedic treatment of Urethral stricture or Mutra ghat or Mutrotsang – Practical panchakarma procedure.
डॉ मधु सूदन व्यास
मूत्र मार्ग संकोच या (यूरिथ्रल स्ट्रीकचर) के लिए कई कई बार आधुनिक शल्य (Surgical) चिकित्सा और मूत्र मार्ग का सतत फेलाव (Urethral dilation)  करना पढता है| इन सबके बाद भी स्थाई लाभ नहीं होता| आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा के अंतर्गत आने वाली प्रक्रिया उत्तर बस्ती इसका स्थाई हल सिद्ध हुआ है|

 इस लेख में इसकी कारगर चिकित्सा उत्तरबस्ती के विषय में जानेगें| यह लेख सामान्य जन को तो आयुर्वेद के चमत्कारों की झलक देगा है, साथ ही चिकित्सको का मार्ग दर्शन भी करेगा| विशेष प्रशिक्षण हेतु हमसे संपर्क भी कर सकते हें|
रोगी मूत्र मार्ग संकोच या Urethral stricture की  स्थाई चिकित्सा के लिए हमसे सम्पर्क कर सकते हें|  
कैसे देते हें उत्तर बस्ती? इसकी प्रक्रिया और परिणाम, के लिए देखें –
आधुनिक शल्य चिकित्सा और समानांतर अन्य प्रक्रियाओं से स्थाई लाभ नहीं मिलता इस अवस्था में आयुर्वेदिक मूत्राघात या मूत्रमार्ग संकोच (Urethral stricture) के लिए जैसा की हमने पूर्व में पढ़ा की वर्तमान आधुनिक शल्य चिकित्सा या सहायक शल्य चिकित्सा ( para-surgical) की कठिनाइयों और समस्याओं के कारण आचार्य आचार्य चरक/ सुश्रुत द्वारा वृंत उत्तर बस्ती जो आयुर्वेदिक पंचकर्म की एक प्रक्रिया है, को अधिक लाभकारी सिद्ध पाया| उत्तरबस्ती की इस चिकित्सा द्वारा एलोपेथिक शल्य आदि चिकित्सा की तुलना अधिक लाभ मिला|
मूत्र का अचानक रुक जाना मूत्र मार्ग और कमर दर्द दर्द, मूत्र की मात्रा का कम होने लगे, मूत्र त्यागने पर नियंत्रण न रहा हो, स्तिथि बहुत गंभीर होने लगती है| यह पूर्व लेख में पढ़ा - लिंक-  Urethral stricture or Mutra ghat/ Mutrotsang (मूत्र मार्गसंकोच, मूत्राघात या मुत्रोत्संग - The Problem caused byUrinary failure.
सिद्द हुआ की उत्तरबस्ती से चिकित्सा के पश्चात् –
1- सबसे महत्वपूर्ण बात यह सिद्ध हुई की मूत्राघात या यूरिथ्रल स्ट्रीकचर रोग की पुनरावृत्ति [Recurrence of stricture] नहीं हुई|
2- यह एक सुरक्षित बाह्य चिकित्सा विभाग [OPD] में किया जा सकने वाली चिकित्सा है|
3- रोगी को अस्पताल में भरती रखने, और बेहोश [एनेस्थीसिया] किये बिना दिया जा सकता है|
4- यह प्रक्रिया बेहद सस्ती, आसान और तुलनात्मक जल्दी लाभ देने वाली है| 

चिकित्सा में निम्न सामग्री (Material)  प्रयुक्त होती है|  
ओषधि और मात्रा लगभग Drugs Approximate volume.
  • मुर्छित तिल तैल या ओषधि सिद्द क्षार तेल आदि (Murchit or medicated Sesame oil) 100 ml,  
  • सेंधव लवण (Rock salt)  04  gm
  • शहद  (Honey) 20 ml
  • जायलोकेन जेल (Xylocan Jelly),
  • Betadine lotion.
विमर्श:- अपने प्रत्यक्ष चिकित्सानुभव में स्थानीय संज्ञाहरण (Anesthesia) हेतु जायलोकेन जेल (Xylocan Jelly) का प्रयोग उचित पाया| इससे ट्यूब को प्रविष्ट करते समय दर्द नहीं हुआ और इससे चिकनी पर्त (Smooth crust) मिलने से, ट्यूब आसानी से अन्दर जाना आसान हुआ|   जीवाणु नाशन हेतु त्रिफला क्वाथ आदि प्राचीन योगों का भी प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु द्रव्यों की शुद्धता के प्रति रिस्क न लेकर बीटाडीन प्रयोग उचित माना गया | 
प्रयुक्त उपकरण Equipments :- 
  • विसंक्रमित ग्लास या डिस्पोजेबल सिरिंज Disposable syringe.50 ml,
  • शिशु आहार नलिका (Infant feeding tube) 8 No. & 10 No., 
  • विसंक्रमित  पेनायल क्लेम्प (Sterile penile clamp), 
  • विसंक्रमित गौज/ कोटन   Sterile cotton pad
  • आपातकालीन ओषधियां, [Emergency medicines]
विमर्श:- ओषधि प्रवेश हेतु आहार नली को केथिटर की तुलना में अधिक उपयुक्त पाया| संभावित आपात स्थिति लिए आवश्यक आपातकालीन ओषधियां भी रखी जाना चाहिए| घवरा जाने से अचानक रोगी किसी सदमे (Shock) में आ सकता है, रक्त बहना, दर्द, या ओषधि प्रतिक्रिया (Allergy), हो सकती है| हालाँकि पूर्व परिक्षण, और रोगी को ठीक समझाइश देने पर एसी स्तिथि नहीं होती|    
रोगी का चयन का आधार [Parameters for selection of patient.]:- आवश्यक प्रयोगशाला एवं रेडियोलॉजिकल निदान (जांच) के बाद रोगियों का चयन  पुरुष या स्त्री, सभी आयु वर्ग से किया जा सकता है| चिकित्सा हेतु निम्न रोगियों को यह बस्ती नहीं दी जाना चाहिए| 
û     तीव्र मूत्र-क्रच्छ (acute urinary tract infection)
û     मधुमेही (Diabetic patients)
û     मूत्र मार्ग में कोई अर्बुद या ग्रन्थि युक्त, (Neoplasms of the urinary tract.
û     पौरुष ग्रन्थि व्रद्धी (Benign prostatic enlargement)
û     मूत्र-मार्ग या मूत्राशय की अश्मरी युक्त रोगी ( calculus in urethra and bladder)
विमर्श:- तीव्र मूत्र संक्रमण और मधुमेह होने पर  की दशा में संक्रमण बढ़ने की सम्भावना होती है, और लाभ भी नहीं होता| मूत्रमार्ग में कोई गठान (विशेषकर केंसर आदि युक्त)  होने पर उसमें लाभ नहीं होता| बड़ी हुई पौरुष ग्रंथि (अष्ठिला) मूत्र मार्ग के बाहर चारों तरफ होती है और दवाव बनाकर मूत्र रोकती है इसमें इस बस्ती देने का का लाभ नहीं होता| मूत्राशय की अश्मरी (पथरी) भी उत्तरबस्ती में अवरोध होती है|
रोगियों चयन गंभीर Severe,  माध्यम Moderate, सोम्य Mild, श्रेणी में कर इस मान से बस्ती संख्या और अन्तराल निश्चित किया जाना चाहिए| इससे रोग निदान में सहायता होती है|
रोग निर्णय हेतु  कुछ जाँच (Investigations) जिनमें रक्त और मूत्र की समान्य जाँच,(Routine blood and urine investigations), करना चाहिए| इसके अतिरिक्त मूत्र मार्ग विशेष x रे [ Urethrogram[*] (Graphy)] और मात्रात्मक अध्ययन  (volumetric studies) यदि पूर्व और चिकित्सा के बाद करा लि जाती है तो लाभ का प्रतिशत प्रमाणित हो जाता है| इससे चिकित्सा अवधि नियंत्रित की जा सकती है| साथ ही भविष्य में इससे प्राप्त अनुभव के आधार पर  नवीन रोगी की चिकित्सा में लाभ भी लिया जा सकता है|
उत्तर बस्ती प्रक्रिया (Procedure of Uttarbasti.)
 पूर्व कर्म (Purvakarma)
1.    रोगी परीक्षा (Investigations.)
2.    उत्तर बस्ती के पूर्व मूत्र त्याग का निर्देश (उत्तर बस्ती के पूर्व मूत्राशय मूत्र रहित करना Emptying of bladder before Uttarbasti).
3.    रोगी को आश्वस्त करना जिससे वह मानसिक रूप से तैयार हो जाये और प्रक्रिया में सहयोग करें, इसके साथ ही रोगी या रोगी के नाबालिग होने की दशा में परिजनों से लिखित सहमती ( Written consent.) ले लिया जाना चाहिए|
4.    रक्त चाप/ नाडी परीक्षा (Blood pressure and pulse rate.) करें|
5.    रोगी को चित्त (पीठ के बल) सुला (Supine position) दें|  
6.    स्थानीय  जीवाणु रहित प्रक्रिया (Local antiseptic care.) विसंक्रमित चादर  से उदर और  निचले भाग को ढक दें केवल लिंग और आवश्यक भाग खुला रखें|
7.    उपकरणों सिरिंज/ पेनायल क्लेम्प का विसंक्रमण (Sterilization of Glass syringe, penile clamp,) कर लें|
8.    शिश्न के पास वाले जंघा आदि भागो पर नाडी स्वेद कर देना चाहिए| इससे स्थानीय क्षेत्र पूरी तरह विसंक्रमित होता है साथ ही दोष अपना स्थान छोड़ देते हें| कुछ पीड़ा आदि में भी आराम मिल जाता है|   
प्रधान कर्म( Pradhanakarm) (देखें विडिओ  
पूर्व कर्म के पश्चात शिश्नाग्र को बीटाडीन से विसंक्रमित कर दें| थोडा सा जायलोकेन जेल को शिश्न द्वारा पर लगा दे और थोडा जेल को मूत्र द्वारा के अन्दर दाल दें| अब लगभग 20 ml ओषधिय तैल हलका गुनगुना (Lukewarm) कर सीरिंज में भरकर तैयार कर लें|
इसके बाद शिश्न को स्थिर कर ट्यूब को (Infant feeding tube) को धीरे धीरे मूत्र मार्ग से जहाँ तक जाये अन्दर प्रवेश करा दें| यह ट्यूब अवरोध स्थान तक जाकर थोड़ी रुक सकती है, पर हलके हाथ से दवाव बना कर और प्रवेश कराएँ जिससे प्रभावित अंतिम भाग तक ओषधि पहुंचाई जा सके|
इसके बाद सिरिंज में भरा हुआ गुनगुना ओषधि तैल ( Lukewarm medicated oil) धीरे धीरे थोड़े दवाव् के साथ, लगभग 30 सेकण्ड में ट्यूब से मूत्र मार्ग में प्रवेश करा दें| ध्यान रखें की हव का बुलबुला अन्दर जाने न पाए|
अब शिश्न पर क्लेम्प लगाकर ओषधि को निकलने से रोकें| लगभग 15  मिनिट तक इसी स्तिथि में रोगी को लिटाये रखें| इस पूरी प्रक्रिया को विडिओ पर देखें:- 
पश्चात् कर्म (Paschatkarma)
ü  रोगी इसी स्थिति में 15 मिनट तक रखने के बाद बाद में क्लैंप को निकाल दें|
ü  पुन रोगी की स्तिथि, रक्तचाप, आदि की देखें|  
ü  रोगी को अगले दो घंटे तक मूत्र त्याग न करने का निर्देश दें|
ü  रोगी और असुरक्षित सम्भोग और  अनावश्यक तनाव से बचने की सलाह दें|
 इसी प्रक्रिया को इसी प्रकार कई बार दोहराया जाना चाहिए| रोग की स्तिथि गंभीर,  मध्यम, या  सोम्य, श्रेणी के अनुसार नित्य, एक या दो दिन छोड़ कर, लगातार  21 दिनों तक दोहराया जा सकता है|
यूरोफ्लोमेट्री (Uroflowmetry [†].) :- इससे  मूत्र विषयक जैसे रिक्तिकरण मात्रा (Voiding volume),अधिकतक परवह दर (Max. flow rate), ओसत प्रवाह दर (Average Flow rat,) प्रवाह समय (Flow Time), और मूत्र प्रवाह का अधिकतम समय (Time to Max. Flow), आदि का निर्णय किया जाता है| यह चिकित्सा के पूर्व और बाद दोने समय कराने से रोग रोग स्तिथि जानी जा सकती है|
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उत्तरबस्ती संभावित क्रिया-प्रक्रिया  Probable mode of action of Uttarbasti
तिल तैल उष्ण, तीक्ष्ण,सूक्ष्म,सर, विकासी, मृदुकर, लेखन, वातकफ़ प्रशामक, कृमिघ्न, एवं व्रणरोपक, होता है|
 सेंधव लवण पुनर्जनन को बढाता है, और छेदन, भेदन,मार्ग विशोधन करता है| यह शरीर के अवयवों को मृदुकारी है| इससे ऊतकों के तंतु लचीले और मृदु हो जाते हें| सेंधव तेल को अन्दर तक पहुचने में सहायक भी होता है|    
क्षार तेल लेखन कर लचीलापन और मृदुकारी है, यह विशेष रूप से वात-कफ शामक भी है| इससे स्नेहन होकर मार्दवता आती है|
इन अध्ययनों में सिद्ध हुआ की उत्तरबस्ती की मूत्रमार्ग संकोच में उपचारात्मक भूमिका है| जो वर्तमान में उपलब्ध पद्धति की तुलना में श्रेष्ट है|

कुछ विशेष शोध कार्य जो उत्तरबस्ती को सफल चिकित्सा सिद्ध करती है देखें लिंक –

ü Clinicalevaluation of Apamarga-Ksharataila Uttarabasti in the management of urethral stricture.-    K Rajeshwar Reddy  AYU (An international quarterly journal of research in Ayurveda), Year 2013, Volume 34, Issue 2 [p. 180-183] 

Foot Notes:-


[*] A urethrogram is a special x-ray examination of the urethra (pathway between the bladder and the opening where urine exits the body). This anatomy is visualized with the use of contrast media (x-ray dye). A urethrogram can be done in conjunction with a cystogram or as a separate procedure.

[†] 1-  Uroflowmetry  Or  Urinary flow test [यूरोफ्लोमिट्री यूरिनरी फ्लो] :- मूत्र प्रवाह परिक्षण का टेस्ट है| इसमें मूत्र त्याग के समय मूत्र प्रवाह और मूत्र धारा और मूत्र बल का पता लगाया जाता है
2- Urethral ultrasound युरिथ्रिल अल्ट्रा साउंड stricturकी  लंबाई का मूल्यांकन
3-Pelvic ultrasound पेल्विक अल्ट्रा साउंड-  मूत्र त्याग के बाद मूत्राशय में मूत्र की उपस्थिति
4- Urinalysis युरिनेलैसिस रक्त की उपस्थिति, संक्रमण, या मूत्र में कैंसर के लक्षण हेतु
5- Pelvic magnetic resonance imaging (MRI) — आकलन के लिए की श्रोणि की हड्डी pelvic bone प्रभावित है या नहीं
6- Retrograde urethrogram (uses X-ray) संरचनात्मक समस्या या मूत्रमार्ग की क्षत की लंबाई और मूत्रमार्ग के संकोच का स्थान
7- Cystoscopy — मूत्र मार्ग से सीधे देखने.
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